मित्र गण के. एम्. मिश्रा. जी, अश्विनी कुमार जी एवं अन्य सहयोगियों के नाम खुला पत्र
मेरे अध्यात्मिक अनुभव !
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प्रिय मित्र अश्विनी जी एवं मिश्रा जी ! सबसे पहले मैं बहुत बहुत आभार प्रकट करना चाहता हूँ कि आप लोंगों ने दौड़-भाग के इस दौर में मेरे ब्लॉग/पिछली पोस्ट (चिंतामुक्त, निरोगी व् आनंदपूर्ण जीवन जियें!) पर पर इतना समय दिया। निसंदेह मुझसे कही अधिक समय अपने इस पर टिप्पणियां देने में व्यतीत किया है । कभी कभी मुझे इस बात से जलन होती कि आपमें कितनी अधिक उर्जा है, मैं तो थोडा ही लिख कर ऊब महसूस करता हूँ । आपने चर्च, पोप पादरियों के विषय में जितने भी आरोप लगायें है उन पर मैं कोई प्रत्युत्तर नहीं दूंगा, लेकिन मैं यह जरूर कहूँगा कि जितना आपने लिखा है उससे कहीं घृणित कार्य इसाई धर्माधिकारियों ने किये हैं ।लेकिन मित्र अपने मेरे ब्लॉग पर उनकी चर्चा क्यों की ? किस धर्म में धर्माधिकारियों पर यौन शोषण के आरोप नहीं लगे ? आपने मेरे लिए एक टिप्पणी की है ” …..आप का क्रोधित एवं उन्मादित होना स्वाभाविक ही है……..” मित्रों ! आपने बार बार इसाई धर्म के धर्माधिकारियों व् मदर टेरेसा पर भी नकारात्मक टिप्पणियां की हैं, लेकिन मित्र मैंने पलट कर किसी भी हिन्दू धर्माधिकारी के विरुद्ध कुछ कहा ? फिर आप मुझे क्रोधित एवं उन्मादित क्यों कहते है ? मित्र(अश्विनी जी) आप ने लिखा है ……………………..मेरे परम स्नेही मित्र डेनियल जी ,,,मे तो इस बात को लेकर चिंतित हूँ की ईसाई धर्म बच भी पायेगा या नही,क्योंकि आपके ईसाईयत के घर वेटिकन में ही लोग ईसाई धर्म से विमुख होकर हिन्दू धर्म एवं जीवन शैली अपना रहें आपने इसाई धर्म की चिंता की यह जानकर अच्छा लगा । लेकिन मित्र मुझे इस बात की कोई चिंता नहीं क्योंकि प्रभु यीशु इसकी चिंता स्वयं ही करेंगे । मेरा जीवन दर्शन है कि किसी बात की चिंता मत करो (लेकिन चिंतन ज़रूर करो ) आप लोंगों को याद ही होगा कि मैं रेकी का अभ्यासी हूँ । रेकी के पाँच नियमो में से एक है “आज के दिन मैं चिंता नहीं करूँगा” मित्र मैं चिंता से परे हूँ ……….क्रोधित व् उन्मादित होना अब मेरा स्वभाव नहीं रहा…………………. , कोई कितना भी अपमानजनक कहता रहे …………………..,कोई फर्क नहीं पड़ता,……………………….. क्योंकि अब मन में अहंकार नहीं रह गया है ………………द्वेषभावना के लिए अब कोई स्थान नहीं ……………………………….मैंने क्रोध पर किसी सीमा तक नियंत्रण कर लिया है,……………………..अपनी चिंताएं प्रभु पर डाल कर मैं स्वयं चिंता मुक्त हो गया हूँ …………..
आज कल के जीवन में जरा जरा सी बात पर तनाव ग्रस्त हो जाना एक सामान्य बात हो गई है आप लोंगों की टिप्पणियों से प्रमाणित हो जाता है …………………………………………………..मैंने अपने आप को कैसे बदला ……………………………………..प्रभु यीशु की कृपा से…………………………………………………………….ध्यान व् चिंतन के साथ । …………………जिस विधि से मैंने यह सब किया उसे अन्य लोगों के साथ बाँटना चाहता हूँ । लेकिन जिनकी कृपा से यह उपलब्धि मिली उन्हें कैसे भूल जाऊं ? अपनी ध्यान पद्धति में प्रभु यीशु के प्रेम, क्षमा, बलिदान व् अनुग्रह के प्रतीक क्रूस का प्रयोग करता हूँ जो मार्ग मेरा जाना पहचाना है ।अपने मित्रों को भी उसी मार्ग से ले जाना पड़ेगा नहीं तो रास्ता भटकने का डर लगा रहेगा । यद्यपि आप जानते ही हैं कि मैं स्वयं गायत्री मन्त्र आदि का साधक रहा हूँ । आप यह भी जानते हैं क्रूस का ध्यान करने से या प्रभु यीशु से प्रार्थना करने से कोई धर्मांतरण नहीं होता, लेकिन आपने मुझे इसाई मिशनरी बता दिया………………………… मित्रों एक दिन शायद आप मुझे समझ सकें । ………………………………………………………………………………………………….इस बात की आशा ज़रूर है !
हम सभी लोग …………………….चिंतामुक्त, निरोगी व् आनंदपूर्णजीवन जी सकें इस शुभकामना के साथ ।
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