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मित्रों ! क्रूस एक अत्यंत शक्तिशाली प्रतीक है जो मानसिक और आत्मिक स्तर पर परिवर्तन लाने वाले प्रभाव उत्पन्न करता है । हम अपने आस पास दैवीय प्रकृति के बहुत सारे प्रतीकों को देखते है, किन्तु क्रूस अपने आप में एक विलक्षणतम प्रतीक है । इसकी विशेषताएं जो इसे विलक्षणतम प्रतीक बनती है इस प्रकार है:~
१.यह प्रतीक है ईश्वर के मनुष्य के प्रति प्रेम की पराकाष्ठा का , जहाँ उसके द्वारा मनुष्य रूप लेकर स्वयं अपना ही बलिदान कर दिया जाता है अर्थात क्रूस पर यीशु की मृत्यु।
ईश्वर के इस अलौकिक प्रेम को पूरे ब्रह्मांड में केवल एक प्रतीक, क्रूस ही दर्शाता है । बहुत से लोगों की यह धारणा है कि यीशु को पापियों ने क्रूस पर चढ़ा कर मार डाला था, लेकिन यह पूर्ण सत्य नहीं है । यीशु का पृथ्वी पर आना और क्रूस पर बलिदान होना ईश्वर द्वारा बनाई गई उस महानतम योजना का एक भाग था, जिसका उद्देश्य सभी पापियों के लिए उद्धार का मार्ग प्रशस्त करना था । ईश्वर कहता है कि हर मनुष्य जन्म से ही पापी है, और उसके सब भले कर्म उसे धर्मी नहीं बना सकते । क्योकि पाप मनुष्य के रक्त में समाहित हो चुका है , जो माता पिता से उनकी संतानों में पहुँच जाता है। इस कारण मनुष्य स्वभाव से ही पापी होता है । ईश्वर का नियम है कि हर व्यक्ति जिसने पाप किया है वह ईश्वरीय दंड का पात्र है । इस प्रकार संसार के प्रत्येक मनुष्य के लिए दंड मिलना ज़रूरी हो जाता है । यीशु ईश्वर के इस नियम को पूर्ण करने के लिए अंतिम दंड (मृत्यु )को स्वयं भोगते है । अर्थात वह दंड जो संसार के सभी मनुष्यों को मिलना था, उस दंड को अपने ऊपर लेकर सभी मनुष्यों को दंड की आज्ञा से मुक्त कर देते है।
२.यह प्रतीक है ईश्वर द्वारा संसार के सभी मनुष्यों को क्षमा प्रदान करने का। यीशु संसार में धर्म या धर्मियों की रक्षा के लिए नहीं आये थे, वे संसार में पापियों को दंड से बचाने अर्थात उन्हें क्षमा दिलाने के लिए आये थे और उन्होंने संसार का दंड अपने ऊपर लेकर संसार के सभी मनुष्यों के लिए क्षमा द्वारा उद्धार का मार्ग सदैव के लिए खोल दिया । यीशु के आने से पहले संसार के किसी भी धर्म ग्रन्थ में पापों की क्षमा का कोई विकल्प नहीं मिलता। यीशु संसार के सभी पापियों के लिए उनके पाप कर्मों का फल भुगतने की अनिवार्यता समाप्त कर देते है। वे हर प्रकार के पापों को ईश्वर द्वारा क्षमा किये जाने का मार्ग तैयार कर देते है । यह प्रतीक ईश्वर द्वारा मनुष्य के हर प्रकार के पाप को क्षमा करने का प्रतीक है।
३.यह प्रतीक है परमेश्वर के साथ निकटतम सम्बन्ध स्थपित होने का। यीशु न केवल स्वयं को ईश्वर का पुत्र घोषित करते है, बल्कि संसार के सभी मनुष्यों को ईश्वर का पुत्र /पुत्री होने का अधिकार प्रदान करते है । यीशु के संसार में अवतरित होने के पूर्व ईश्वर से मनुष्य का सम्बन्ध सृष्टिकर्ता से उसकी सृष्टि , प्रभु से उसके भक्त का था । यीशु इस सम्बन्ध को पिता और उसके पुत्र /पुत्री के सम्बन्ध में बदल देते है। संसार का कोई भी सम्बन्ध उतना आत्मीय व् निकट नहीं है जितना पिता का पुत्र /पुत्री से है । क्रूस ईश्वर से निकटतम सम्बन्ध स्थापित होने का प्रतीक है ।
४.क्रूस प्रतीक है अनुग्रह का ! अनुग्रह वह कृपा है जो यीशु के माध्यम से ईश्वर हमें प्रदान करते है । अनुग्रह के द्वारा ही हम अपने पाप के कामों से मुक्त हो कर धर्मी ठहरते है। अनुग्रह के द्वारा ही अयोग्य होने पर भी हमें योग्यता प्रदान की जाती है। अनुग्रह के द्वारा ही हम अपने स्वाभाविक पाप के कामों को छोड़ पाते है और आत्मिक उन्नति करने की क्षमता प्राप्त करते है । अनुग्रह के द्वारा ही हमारे सारे पाप सदैव के लिए ढांप दिए जाते है। अनुग्रह के द्वारा ही मृत्यु के पूर्व ही हमें नया जन्म मिलता है और अनुग्रह के कारण ही हम पर दंड की आज्ञा नहीं होती ।
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