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ईश्वर के प्रति कृतज्ञता व् धन्यवाद का महत्व !!!

मेरे अध्यात्मिक अनुभव !
मेरे अध्यात्मिक अनुभव !
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अक्सर लोंगों के मन में यह प्रश्न उठता है कि आत्मिक उन्नति व् ईश्वर की निकटता प्राप्त करने के लिए वे क्या करें ?
इस विषय पर आगे कुछ भी कहने से पहले मैं आपको बता दूँ  कि मेरी आध्यात्मिक यात्रा  का साधन धर्म ग्रन्थ नहीं वरन आत्म चिंतन है । विभिन्न धर्म ग्रंथों ने मेरे आत्म चिंतन में निश्चित ही सहयोग किया है ,लेकिन इस विषय पर आत्म चिंतन व् अनुभव  से मुझे जो ज्ञान प्राप्त हुआ है, उसके अनुसार  आत्मिक उन्नति व् ईश्वर की निकटता प्राप्त करने के लिए किसी भी प्रकार की पूजा अथवा साधना की आवश्यकता नहीं है ।
आत्मिक उन्नति व् ईश्वर की निकटता प्राप्त करने के लिए सबसे आसान तरीका है ईश्वर के प्रति कृतज्ञ होना । मात्र  कृतज्ञ होना ही नहीं , ईश्वर का ध्यान करते हुए कृतज्ञता प्रकट करना । एक बात है जिसका उल्लेख करना आवश्यक है । एक  व्यक्ति  जो आत्मिक रूप से उन्नति के पथ पर अग्रसर है , वह स्वयं ही दिन रात ईश्वर के प्रति कृतज्ञता प्रकट करता रहता है ।ऐसा करना उसके स्वभाव में सम्मिलित हो जाता है ।

……………………लेकिन एक नया व्यक्ति जब  आत्मिक उन्नति व् ईश्वर की निकटता प्राप्त करने के विचार के साथ आता है, तो उसे यह कार्य प्रयास से करना पड़ता है । ईश्वर के प्रति कृतज्ञ होने के अनेक लाभ है । सर्वप्रथम आत्मिक मार्ग पर अग्रसर होना (आत्मिक उन्नति व् ईश्वर की निकटता प्राप्त करने के लिए लम्बी यात्रा का शुभारम्भ हो जाना )
दूसरा लाभ यह है कि आत्मिक उन्नति के मार्ग की सबसे बड़ी बाधा अर्थात  हमारा अहंकार नष्ठ होने लगता है ।  एक नए व्यक्ति के लिए पहली समस्या यही होती है कि वह किस बात के लिए कृतज्ञता प्रकट करे ।दूसरी समस्या यह आती है कि कृतज्ञता प्रकट करते समय उपयुक्त भाव उसके मन में नहीं आते है । स्थिति स्पष्ठ करने के लिए मैं एक उदाहरण दूंगा । ईश्वर में लीन व्यक्ति अपनी  हर सांस के लिए, जीवन के हर दिन के लिए , अपने स्वस्थ शरीर के लिए अथवा किसी भी सामान्य बात के लिए  ईश्वर को बड़े ही भाव पूर्ण ढंग से कृतज्ञता अर्पित करता है । लेकिन एक आम व्यक्ति अपनी हर सांस , प्रति दिन के जीवन के लिए ईश्वर के प्रति सहज रूप से कृतज्ञ नहीं हो पाता और उसे लगता है कि वह ईश्वर के सामने अभिनय कर रहा है । ऐसी समस्याएँ स्वयं मैंने भी महसूस की थी । इस समस्या का जो समाधान मैंने ढूंढा था उसे आपके लिए प्रस्तुत करता हूँ ।

…………………………सबसे पहले आप उन बातों की सूची बना लें जिनके कारण आप स्वयं पर गर्व कर सकते है जैसे आप अच्छे गायक हों , पढाई में अच्छे हों ,रूपवान हों , स्पोर्ट्स में अच्छे हों , शारीरिक बल में श्रेष्ट्र हों या अन्य कोई भी विशेषता , जिस पर आप स्वयं पर घमंड करते हों या कर  सकते हों ।बस इन्ही विशेषताओं को ईश्वर को अर्पित कर दें । इन्हीं  विशेषताओं के लिए ईश्वर को धन्यवाद दें / कृतज्ञता प्रकट करें । ऐसा आप प्रतिदिन करें, जब आप इन विशेषताओं के लिए ईश्वर को धन्यवाद देते है , तो ये विशेषताएं आपकी नहीं रह जाती ।यह अब ईश्वर की ओर से आपको प्रदत्त आशीषें हो जाती हैं ।इनका प्रति दिन ध्यान  करने से इन विशेषताओं पर आपका अहंकार समाप्त हो जाता है। ईश्वर को धन्यवाद देने से आपके अन्दर सकारात्मक उर्जाओं का प्रवाह  होने लगता है, फलस्वरूप अन्दर की नकारात्मक उर्जायें नष्ट होने लगती है। आरम्भ में जब मैंने इस का प्रयोग किया तो कुछ दिन असहज सा लगा ,किन्तु जल्दी ही सब कुछ अच्छा लगने  लगा । अब जब मैं ईश्वर के प्रति कृतज्ञता प्रस्तुत करता हूँ, तो कई बार मेरी आँखों से आंसू बहने लगते है। इसे एक उत्तम स्थिति कह सकते है, लेकिन ऐसा ज़रूरी है  यह नहीं समझना चाहिए। जो पाठक ईश्वर की निकटता व् आत्मिक उन्नति के मार्ग की खोज में है वे इस विधि से अवश्य लाभ उठा सकते है ।
…………………आध्यात्मिक यात्रा के पथिकों को मेरी शुभकामनाएं !!!

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